जब भी ज़िन्दगी की बल खाती राह के बारे में सोचा , हर बार एक नदी का ख्याल आया !
कई बार लगा कि हर मोड़ पे मंज़र बदल जाना , नए नए मोड़ आना , रुक जाना फिर चल पड़ना ,
बिलकुल एक नदी की तरह !
कभी तेज़ बहाव , कभी ठहराव ,
कभी पत्थरों के बीच से राह बनाना , और कभी गहरी खायी में गुम हो जाना ,
फिर से निकल आना एक नए रास्ते की ओर , फिर चल पड़ना !!
रुकने की कोई राह ही नहीं , जहाँ रुकी वहीँ पानी गन्दला जाना ,
जैसे दिल्ली की जमुना , जिसका कोई पता नहीं किधर से आना है किधर को जाना !!
बस यहीं पहुँच कर लगा कि रुकना नहीं है ,
पत्थरों के बीच रास्ता होगा तो सही ,
पत्थर कब रोक पाए हैं नदी का बहाव , दिशा तो बदल सकते हैं ये ,
बहाव रोक देने की ताकत उनमे है ही नहीं !!
अपनत्व के ब्लॉग पर हिंदी कविता पढ़ती थी तो हर बार हिंदी में लिखने कि इच्छा होती थी , अच्छा न सही सच्चा है जो भी लिखा है मैंने !!
बहुत उत्सुकता रहेगी ये जानने की कि कैसा लगा आप सब को !
बहुत बार नदी के बारे में सोचा और लिखने बैठी तो एक बार में ही इतना निकल आया , थोडा और पढ़िए......
नदी जब निकलती है पहाड़ो के बीच से ,
कितना वेग , कितना साहस , कितना विश्वास ,
जैसे कोई फ़िक्र नहीं , बस दौड़ते जाना है ,
अपनी मंजिल की ओर ,
मंजिल भी वो , जिसका कोई पता नहीं !
मैदानों में आ कर कैसे गंभीर हो जाती है वो ,
जैसे सब कुछ जान लिया है , अनुभव पा लिए हैं ज़िन्दगी के ,
और अपने किनारों को समृद्ध कर जाती है वो ,
अपने अनुभव बांटती जाती है ,
पर वेग कम और कम होता जाता है ,
जैसे जैसे गहराई बढती है , पानी बढ़ता है ,
नदी की ताकत बढती है ,
पर उसका वेग कम हो जाता है ,
जैसे उसे समझ आ गयी हो ,
गंभीरता और धीरता आ गयी हो !
पर आगे तो बढ़ना है उसे ,
धीरे धीरे शायद उसका पानी बंट जाए ,
धाराएँ बिखर जाए , और सागर तक न पहुच पायें ,
फिर भी नदी अपने किनारों को दे जाती है वो पहचान ,
अपने होने के वो अमिट निशान ,
कि सब उसे देखने पहुँच ही जाते हैं ,
चाहे वो गंगोत्री हो या फिर सुंदरवन
या फिर केरल के backwaters आलीशान !!
बस दिल्ली की जमुना ही नहीं देखने जाता कोई ,
गला जो घोंट दिया है उसका इस शहर ने!!
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bahut sunder abhivykti...........likhane ka krum jaree rakhana................
ReplyDeleteye din mujhe hamesha yad rahega aaj meree bitiya ka bhee janmdin hai....pahala prayas kaun yakeen karega ?bahut accha laga............aur aate hee chakka laga diya..........:)
nice
ReplyDeleteहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteउत्कृष्ट ।
ReplyDeleteनदी
जन्मी पूरी सदी ।
संगीता जी, नदी को लेकर कविता के रूप में बहुत सुंदर अभिव्यक्ति देखने/पढ़ने को मिली। बधाई !
ReplyDeleteKabhi-kabhi nadiya bahut dard bhi deti hai!
ReplyDeleteKaise? Pdhiye:
Nadiya: Mukkamal Muhabbat, Adhoori Wafa!
Achhi abhivyakti aur ek aham mudda!
Saadhuwaad!
Are Wah! Aapne bahut sundar likha hai..
ReplyDeletesundar rachana
ReplyDeletemai us nadi ko to nahi dekh paa raha hoon per saayad usme chupe us insaan ko mahsus kar raha hoon jiski shakl or dasa mujhse kaphi milti julti hai. aaj carrier ke success per khade hone ke baat bhi zindagi me jo sunyata mahsus kar raha hoon. us sunyata ko jaise kisi ne khubsurat dhang se varnit kar diya ho. padh kar accha laga or aisa laga ki kisi ne mujhe chu liya ho. aapko ek utkrith kavita ke liye badhai or dhanyawaad.
ReplyDeleteTouching poetry Sangeeta.River's perseverance beautifully expressed.
ReplyDeletebahut achha likha hai...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है ! आपने एक नदी के जीवन का सही चित्रण किया है और नदी को जीवन से तुलना करके बहुत सुन्दर कविता प्रस्तुत किया है ! बधाई !
ReplyDelete"बस दिल्ली की जमुना ही नहीं देखने जाता कोई ,
ReplyDeleteगला जो घोंट दिया है उसका इस शहर ने!!"
सच्ची भी है और अच्छी भी - भावों और संदेशों को संजोये सुंदर रचना के लिए बधाई.
beautiful expressions,really impressed me.Pl keep writing and enjoy.with best wishes,
ReplyDeletedr.bhoopendra
jeevansandarbh.blogspot.com
Sangeeta G, well written.... U can visit my blog for this type of Poem on Nadi...
ReplyDeletehttp://kamleshpro.blogspot.com/2009/08/blog-post.html
Sangeeta G, well written.... U can visit my blog for this type of Poem on Nadi...
ReplyDeletehttp://kamleshpro.blogspot.com/2009/08/blog-post.html
बस दिल्ली की जमुना ही नहीं देखने जाता कोई ,
ReplyDeleteगला जो घोंट दिया है उसका इस शहर ने!!
-वाकई, दिल्ली की जमुना तो गुम गई है..कोई काश उसे बचाता!!
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
dil ko chhooti huyi bahut sundar kavita.
ReplyDeleteaap achha likhti hain
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aapke blog pe aana sukhad raha
shubh kamnayen
बस दिल्ली की जमुना ही नहीं देखने जाता कोई ,
ReplyDeleteगला जो घोंट दिया है उसका इस शहर ने!!
अति सुन्दर , कमाल का लिखा है
kyaa baat...kyaa baat....kyaa baat....lazawaab...
ReplyDeletebahut khoob likhte rahen....
ReplyDeleteJai Ho Mangalmay ho
बहुत बड़ी बात आप ने सरल भाषा में कह दी.........बधाई....
ReplyDeleteI must say Sangeeta it's a wonderful description of journey of life ...parallel comparison of life and river .. Life is a journey not a destination ...Very well done .I didn't know that u r a poetess too, keep it up .
ReplyDeleteVery beautifully and well explained words !! In can sense the depths of the words !!Great post !! Keep them cuming !!
ReplyDeletewonderful expression!!...I keep coming back to read this poem again and again... I totally agree with Apnatva that it is difficult to believe that this is your first attempt at Hindi poetry....Kudos and do keep writing.
ReplyDeleteDear Sangeeta
ReplyDeleteVery well expressed , I liked the poem ...so apart from cooking , u write poems too...great !!!
Have a nice day
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletesandeeta itne protsahan ke baad bhee .............
ReplyDeletekabhee kabhee likha karo.........
kaisee ho?
take care......
Loved it. Absolutely true too. (I wish we had the option of typing in Hindi here)
ReplyDeletePoetry is such a powerful medium for expressing emotions that prose finds difficult to deal with. My favorite lines from a Hindi text book, in class X I think,
"Yeh Janam hua kis arth aho
Samjho jisne yeh vyarth naa ho"