Friday, April 16, 2010

नदी रूकती नहीं ......

जब भी ज़िन्दगी की बल खाती राह के बारे में सोचा , हर बार एक नदी का ख्याल आया !
कई बार लगा कि हर मोड़ पे मंज़र बदल जाना , नए नए मोड़ आना , रुक जाना फिर चल पड़ना ,
बिलकुल एक नदी की तरह !
कभी तेज़ बहाव , कभी ठहराव ,
कभी पत्थरों के बीच से राह बनाना , और कभी गहरी खायी में गुम हो जाना ,
फिर से निकल आना एक नए रास्ते की ओर , फिर चल पड़ना !!
रुकने की कोई राह ही नहीं , जहाँ रुकी वहीँ पानी गन्दला जाना ,
जैसे दिल्ली की जमुना , जिसका कोई पता नहीं किधर से आना है किधर को जाना !!
बस यहीं पहुँच कर लगा कि रुकना नहीं है ,
पत्थरों के बीच रास्ता होगा तो सही ,
पत्थर कब रोक पाए हैं नदी का बहाव , दिशा तो बदल सकते हैं ये ,
बहाव रोक देने की ताकत उनमे है ही नहीं !!

अपनत्व के ब्लॉग पर हिंदी कविता पढ़ती थी तो हर बार हिंदी में लिखने कि इच्छा होती थी , अच्छा न सही सच्चा है जो भी लिखा है मैंने !!
बहुत उत्सुकता रहेगी ये जानने की कि कैसा लगा आप सब को !


बहुत बार नदी के बारे में सोचा और लिखने बैठी तो एक बार में ही इतना निकल आया , थोडा और पढ़िए......

नदी जब निकलती है पहाड़ो के बीच से ,
कितना वेग , कितना साहस , कितना विश्वास ,
जैसे कोई फ़िक्र नहीं , बस दौड़ते जाना है ,
अपनी मंजिल की ओर ,
मंजिल भी वो , जिसका कोई पता नहीं !
मैदानों में आ कर कैसे गंभीर हो जाती है वो ,
जैसे सब कुछ जान लिया है , अनुभव पा लिए हैं ज़िन्दगी के ,
और अपने किनारों को समृद्ध कर जाती है वो ,
अपने अनुभव बांटती जाती है ,
पर वेग कम और कम होता जाता है ,
जैसे जैसे गहराई बढती है , पानी बढ़ता है ,
नदी की ताकत बढती है ,
पर उसका वेग कम हो जाता है ,
जैसे उसे समझ आ गयी हो ,
गंभीरता और धीरता आ गयी हो !
पर आगे तो बढ़ना है उसे ,
धीरे धीरे शायद उसका पानी बंट जाए ,
धाराएँ बिखर जाए , और सागर तक न पहुच पायें ,
फिर भी नदी अपने किनारों को दे जाती है वो पहचान ,
अपने होने के वो अमिट निशान ,
कि सब उसे देखने पहुँच ही जाते हैं ,
चाहे वो गंगोत्री हो या फिर सुंदरवन
या फिर केरल के backwaters आलीशान !!
बस दिल्ली की जमुना ही नहीं देखने जाता कोई ,
गला जो घोंट दिया है उसका इस शहर ने!!